ऋग्वेद | यजुर्वेद |
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सामवेद | अथर्ववेद |
वेद आर्य धर्म का मूल है। उसमें समस्त ज्ञान भरा हुआ है। चारों वर्ण, तीनों लोक, चारो आश्रम , भूत , वर्तमान और भविष्य इन सब का पूरा ज्ञान वेद से होता है। वेद के विषय में सबसे पहला प्रश्न यह है कि वेद किसको कहते हैं? "वेद" शब्द का व्याकरण निष्पन शास्त्रीय अर्ध "ज्ञान" है। क्योंकि "वे" शब्द की उत्पत्ति ज्ञानार्थक "विद" धातु से है। अतः वेद पद का अर्थ है ज्ञान। ज्ञान शब्द व्यापक अर्थ का प्रतिपादक है। इसमें आध्यात्मिक विद्या के अतिरिक्त इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान आदि सभी विषयों का अर्थ समावेश हो जाता है। परंतु वेद पद के ज्ञान का अर्थ मुख्यतः आध्यात्मिक ज्ञान है। वेद शब्द में उसे ईश्वरीय ज्ञान की ओर अभिप्रेरित करता है जो हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार इसके पहले पहल ऋषि मुनियों ने खोजा अथवा जिनमें उन्होंने साक्षात्कार किया था। अतः यह स्पष्ट है तप: पूत ऋषि महर्षियों द्वारा ईस्ट ज्ञान ही वेद शब्द का अभिप्रेरित अर्थ है।
इस प्रकार वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान है और वेदों का उद्देश्य अपने समय का समस्त ज्ञान विज्ञान को स्पष्ट करना था। अतः हम भारत के सभी शास्त्रों अर्थात भारतीय साहित्य दर्शन व जीवन का बीज वेदन में ही पाते हैं तथा संसार की प्राचीनतम रचनाएं होने के कारण वेद आदि मानव संस्कृति के अन्वेषण के लिए बहुमूल्य भी है। वेद ने केवल हिंदुओं एवं भारतीयों के लिए ही सर्वस्व है अपितु विश्व के अन्य धर्मावलंबियों के लिए भी अत्यधिक उपादेय और महत्वपूर्ण है।
वेद के ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ये चार भाग माने जाते हैं। इनके लिए ही ऋकसंहिता, यजु: संहिता, सामसंहिता और अथर्ववेद संहिता ये नाम प्रसिद्ध है। प्रत्येक वेद के विषय में कुछ जानने से पहले वेदों की शाखों के बारे में थोड़ा विचार कर लेना आवश्यक है। प्रत्येक वेद की अनेक शाखाएं मानी जाती हैं। इन शाखा भेद का क्या अभिप्राय है? इस विषय में प्राय भ्रांत धारणाएं फैली हुई है। परंतु प्रत्येक वैदिक जानता है कि उसका किस वेद की किस शाखा से संबंध है। वह यह भी जानता है कि उसकी शाखा में प्रचलित वेद संहिता का पाठ अपने ही वेद की अन्य शाखा से संबंधित संहिता के पाठ से कुछ ही अंशों में भिन्न है। इसलिए यह स्पष्ट है कि वेदों का शाखा भेद बहुत अंश तक किसी भी प्राचीन ग्रंथ के समान पाठ भेद पर ही आधार रखता है।
ऋग्वेद के मंत्र अन्य तीनों वेदों में उपलब्ध होते हैं और सामवेद तो पूरा का पूरा ऋग्वेद के मन्त्रों से ही बना है अतः चारों संहिताओं से ऋग्वेद की प्राचीनता सिद्ध हो जाती है। कहा जाता है कि ऋग्वेद एक ग्रंथ ना होकर विशाल का एक ग्रंथ समूह है और भाषा में अर्थ की दृष्टि से भी वह एक ही ऋषि की रचना नहीं है तथा विभिन्न ऋषियों द्वारा विभिन्न कालों में की हुई रचना है।
ऋक या ऋचा छंद्दोबध मन्त्रों को कहते हैं। इन ऋचाओं अथवा मंत्रों के संकलन को संहिता कहते हैं। महाभाष्य जैसी प्राचीन ग्रंथ में लगभग 150 ईसा पूर्व कहा गया है कि ऋग्वेद की 21 शाखाएं थी। पीछे के ग में केवल पांच शाखों का उल्लेख मिलता है। शाखों की इस कमी का मुख्य कारण अध्ययन और अध्यापन की कमी हो सकता है। आजकल जो ऋग्वेद संहिता प्रचलित है उसका संबंध शाकल शाखा से है।